04-02-1980     ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"भाग्य विधाता बाप और भाग्यशाली बच्चे"

आज ज्ञान-दाता, भाग्य विधाता बाप बच्चों के भाग्य को देख रहे हैं। सर्व श्रेष्ठ आत्माओं का भाग्य कितना श्रेष्ठ है, और कैसे श्रेष्ठ है? जैसे आप सभी बाप का परिचय देते हो तो विशेष 6 बातें सुनाते हो। जिस द्वारा बाप के परिचय को स्पष्ट करते हो। अगर इन 6 बातों को जान जाएँ तो आत्मा श्रेष्ठ पद को पा सकती है। वर्तमान और भविष्य, दोनों में सर्व प्राप्ति के अधिकारी बन सकते हैं। ऐसे बाप-दादा भी बच्चों के भाग्य को 6 बातों के आधार से देख रहे थे। 6 बातें तो अच्छी तरह से जानते हो?

1. आप श्रेष्ठ आत्माओं के नाम का भी भाग्य है - जो आपके नाम अब भी विश्व की आत्माएँ वर्णन करती हैं। जैसे `ब्राह्मण चोटी'। आपके ब्राह्मण नाम से आज के नामधारी ब्राह्मण अब लास्ट समय तक भी श्रेष्ठ गाये जा रहे हैं। अब तक भी काम बदल गया है लेकिन नाम का मान मिल रहा है। ऐसे ही `पाण्डव सेना', आज तक भी इस पाण्डव नाम से दिलशिकस्त आत्मा स्वयं को उत्साह दिलाती है कि पाँच पाण्डवों के समान बाप का साथ लेने से विजयी बन जायेंगे। थोड़े हैं तो कोई हर्जा नहीं। पाण्डव सदा विजयी रहे हैं। हम भी विजयी बन सकते हैं। इसी प्रकार `गोप-गोपियाँ'। आज भी गोप गोपियों की महिमा करते खुशी में आ जाते हैं। नाम सुनते ही प्रेम में लवलीन हो जाते हैं। इसी प्रकार से आपके नाम का भी भाग्य है।

2. रूप का भी भाग्य है - शक्तियों के रूप में अब तक भी भक्त लोग दर्शन के लिए सर्दा-गर्मा सहन कर रहे हैं। यहाँ तो फिर भी आराम है। वह तो धरती और आकाश के बीच खड़े-खड़े तपस्या करते हैं। तो शक्तियों के रूप में, देवी-देवताओं के रूप में पूजन होने का भाग्य है। दोनों रूप में पूज्य बनते हो। तो रूप का गायन और पूजन है। विशेष पूजन का ही भाग्य है।

3. आपके गुणों का भाग्य है - आज तक कीर्तन के रूप में वर्णन कर रहे हैं। ऐसा वर्णन करते हैं जो आप के गुणों के भाग्य का प्रभाव अल्पकाल के लिए कीर्तन करने वालों को भी शान्ति और खुशी का, आनन्द का अनुभव होता है। यह है गुणों का भाग्य। और आगे चलो –

4. कर्त्तव्य का भाग्य - आज तक सारे वर्ष में भिन्न-भिन्न प्रकार के उत्सव मनाते हैं। आप श्रेष्ठ आत्माओं ने अनेक प्रकार के साधनों द्वारा आत्माओं के जीवन में उत्साह दिलाया है। इसलिए कर्त्तव्य के भाग्य की निशानी उत्सव मनाते हैं। आगे चलो –

5. निवास स्थान - निवास-स्थान अर्थात् रहने का धाम। उसका यादगार `तीर्थस्थान' है। आप के स्थान का भी इतना भाग्य हैं जो स्थान तीर्थ स्थान हो गये हैं। जिसकी मिट्टी का भी भाग्य हैं। अगर तीर्थस्थान की मिट्टी भी मस्तक में लगाते हैं तो अपने को भाग्यशाली समझते हैं। जो स्थान का भाग्य है और आगे –

6. इस संगम समय के भाग्य का वर्णन विशेष अमृतवेले के रूप में गाया जाता है। अमृतवेला अर्थात् अमृत द्वारा अमर बनने की वेला। साथ-साथ धर्माऊ युग `पुरूषोत्तम युग'। नुमाशाम का समय भी श्रेष्ठ भाग्य का मानते हैं। यह सब समय का गायन आपके इस समय का गायन है। तो समझा, अपने श्रेष्ठ भाग्य को।

आज बाप-दादा हरेक बच्चे के भाग्य को विशेष इन 6 बातों से देख रहे थे। 6 ही प्रकार के भाग्य को किस परसेन्टेज में बनाया है। अपने श्रेष्ठ नाम की स्मृति में कहाँ तक रहते हैं, कितना समय रहते हैं और किस स्टेज में रहते हैं। अपने दिव्य गुणधारी देवता का रूप व मास्टर सर्वशक्तिवान शक्ति रूप दोनों रूप में समर्थ स्वरूप कहाँ तक हैं? ऐसे हर बात की रिजल्ट देखी। सुनाया कि सूक्ष्मवतन में मेहनत नहीं करनी पड़ती है चेकिंग करने में। संकल्प का स्विच ऑन (Switch on)किया और हरेक का सब प्रकार का टोटल इमर्ज हो जाता है। साकार दुनिया के माफिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है। जो साइन्स के साधन अभी निकाल रहे हैं उसका रिफाइन रूप वहाँ पहले से ही है। यह टी.वी. तो अभी निकली है लेकिन आप बच्चों को सूक्ष्मवतन में स्थूल वतन का दृश्य स्थापना के आदि में ही दिखाकर अनुभव कराया है। साइन्स वाले मेहनती बच्चे हैं, अब सितारों तक मेहनत कर रहे हैं। चन्द्रमा में कुछ नहीं मिला तो सितारें ही सही। लेकिन आप बच्चे साइलेन्स की शक्ति से सितारों से भी परे परमधाम का अनुभव आदि से कर रहे हो फिर भी हरेक बच्चे को मेहनत का फल जरूर मिलता है। उनको भी विश्व में नाम-मान-शान और सफलता की अल्पकाल की खुशी प्राप्त हो जाती है। यह भी ड्रामा के अन्दर परवश हैं अर्थात् पार्ट के वश हैं। जो गाया हुआ है देवताओं के आगे प्रकृति हीरे रतनों की थालियाँ भर कर आये। पृथ्वी और सागर यह आपके लिए चारों ओर फैला हुआ सोना और मोतीहीरे, एक स्थान पर इकट्ठा करने के निमित्त बनेंगे। इसी को कहा जाता है - थालियाँ भरकर आये। थाली में बिखरी हुई चीज़ इकट्ठी हो जाती हैं ना। तो यह भारत और आसपास, यह स्थान थाली बन जायेंगे। सेवक बनकर विश्व के मालिकों के लिए तैयारी कर आपके आगे रखेंगे। ऐसे ही देवताओं के लिए सर्व रिद्धि-सिद्धियाँ भी सेवाधारी बनती हैं। यह जो भिन्न-भिन्न प्रकार के साधनों द्वारा सफलता अर्थात् सिद्धि को प्राप्त करते हैं यह सब सिद्धियाँ अर्थात् साइन्स का भी रिफाइन रूप, सफलता रूप सिद्धि के रूप में आपके सेवाधारी बनेंगे। अभी तो एक्सीडेन्ट भी है और प्राप्ति भी है। लेकिन रिफाइन सिद्धि रूप में दु:ख का कारण समाप्त हो सदा सुख और सफलता रूप बन जायेंगे। यह जो भिन्न-भिन्न डिपार्टमेन्ट वाले हैं वे अपनी-अपनी नॉलेज की सिद्धि, इन्वेन्शन की सिद्धि आपकी सेवा में लायेंगे। इसको कहा जाता है प्रकृति भी दासी और सर्व रिद्धिसिद्धि की प्राप्ति। आर्डर किया और कार्य हुआ। इसको कहा जाता है - `सिद्धि स्वरूप'। तो समझा, आपका भाग्य कितना बड़ा है? बाप के भाग्य को तो आत्मायें वर्णन करती हैं लेकिन आपके भाग्य को बाप वर्णन करते हैं। इससे बड़ा भाग्य न हुआ है, न होगा। अभी तो सबको भाग्य का सितारा दिखाई दे रहा है, जैसे अभी स्पष्ट दिखाई दे रहा है ऐसे सदा अपने भाग्य के सितारे को चमकता हुआ देखो।

ऐसे श्रेष्ठ भाग्यशाली, सर्व आत्माओं के भाग्य बनाने के निमित्त बनी हुई आत्माएँ सदा प्रकृतिजीत बन प्रकृति को भी सेवाधारी बनाने वाले, मास्टर सर्वशक्तिवान बन शक्तियों के आधार पर सर्व रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करने वाले, ऐसे सदा सर्वशक्तिवान बन विश्व-कल्याणकारी बन, विश्व की आत्माओं को महादान व वरदान देने वाले ज्ञानदाता, भाग्य-विधाता के बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

वायुमण्डल को पावर फुल बनाना ही बेहद की सेवा है

निमित्त सेवाधारी बहनों प्रति - सेवाधारी बच्चों की विशेष सेवा ही है - `स्वयं भरपूर रहना और सर्व को करना'। शक्ति स्वरूप रहना और शक्ति स्वरूप बनाना। तो इसी कार्य में बिजी हो? कोर्स कराना, भाषण करना, ये तो 7 दिन के स्टूडेन्ट्स भी कर लेते हैं। जो काम कोई भी न करे वह आपको करना है। आपको निमित्त बनाया ही है विशेष कार्य अर्थ। वह विशेष कार्य है - बाप द्वारा प्राप्त हुई विशेषताओं को निर्बल आत्माओं में अपनी शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना से भरना। आपका कार्य ही है - सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरूप बनना। श्रेष्ठ भावना का अर्थ यह नहीं कि किसी में भावना रखते-रखते उसके भाववान हो जाओ। यह गलती नहीं करना। क्योंकि चलते-चलते उल्टा भी कर लेते हैं। भाववान बनना यानि उसके भक्त बन जाना अर्थात् उसके गुणों पर न्यौछावर हो जाना, माना भक्त बनना। तो शुभ भावना भी बेहद की हो। एक के प्रति विशेष भावना भी हद है। हद में नुकसान है, बेहद में नहीं। वर्तमान समय आप बच्चों का कार्य है - निर्बल आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के आधार पर शुद्ध वायब्रेशन्स, वायुमण्डल द्वारा शक्तिशाली बनाना। इसी कार्य में सदा बिजी रहते हो? कोर्स कराने का समय अभी गया, अभी फोर्स का कोर्स कराना है। कोर्स कराने वाले दूसरे भी तैयार हो गये हैं। इसलिए आप वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने की सेवा करो। क्योंकि दुनिया का वायुमण्डल दिन-प्रतिदिन मायावी बनता जायेगा, माया भी लास्ट चान्स में अपने यन्त्र-मन्त्र और जन्त्र जो भी हैं वह सब यूज़ करेगी। अटैक (Attack) तो करेगी ना? ऐसे विदाई नहीं लेगी। इसलिए ऐसे वायुमण्डल के बीच अपने सेवा स्थानों का वायुमण्डल बहुत ही अव्यक्त और शक्तिशाली बनाओ। जैसे आपके जड़ मन्दिरों का वायुमण्डल कैसी भी आत्मा को अपनी तरफ खींचता है, अल्पकाल के लिए अशान्त, शान्त हो जाते हैं। जब जड़ चित्रों के स्थान पर ऐसा वायुमण्डल है तो चैतन्य सेवा स्थानों पर कैसा पॉवरफुल वायुमण्डल चाहिए? तो चेक करो - आज का वायुमण्डल शक्ति शाली रहा? जो भी आये वह व्यक्त और व्यर्थ बातों से परे हो जाए। यह जो चलते-चलते अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं, या कोई व्यक्त भाव में आ जाते हैं तो उसका कारण वायुमण्डल में व्यक्त भाव है। अगर अव्यक्त हो तो कोई व्यक्त भाव की बातें लेकर भी आयेंगे तो बदल जायेंगे। जैसे जड़ मन्दिरों में अल्पकाल के लिए बदल जाते हैं ना। यह सदाकाल की बात है। क्योंकि वह जड़ है, यह चैतन्य है। तो अब सिर्फ भाषण या प्रदर्शनी की लिस्ट नहीं बनानी है लेकिन साथ-साथ शक्तिशाली वायुमण्डल की भी चेकिंग करो।

वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने का साधन क्या है? अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना है। यही साधन है। इसका बार-बार अटेन्शन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है ना। अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार यही अटेन्शन रहेगा। तो यह साधना अर्थात् बार-बार अटेन्शन की तपस्या चाहिए। चेक करो कि मैं अव्यक्त फरिश्ता हूँ? अगर स्वयं नहीं होंगे तो दूसरों को कैसे बना सकेंगे?

बाप के जो भी इशारे मिलते हैं उन इशारों को समझकर चलते रहो। अभी यह पूछने का समय गया कि कैसे पुरूषार्थ करें? अगर आप ही पूछेंगे तो और आने वाले क्या करेंगे? इसलिए जो भिन्न-भिन्न पुरूषार्थ की युक्तियाँ सुनाई हैं, उनमें से एक भी युक्ति अपनाओ तो स्वयं भी सफल हो जायेंगे और औरों को भी सफल बना सकेंगे।

तो अब क्या करूँ और कैसे करूँ की भाषा समाप्त। मुरली में रोज क्या करूँ और कैसे करूँ की बातों का रेसपान्स मिलता है। अगर फिर भी पूछते हैं तो माना मुरली को प्रैक्टिकल में लाने की शक्ति कम है।

फिर भी सभी सेवाधारी बच्चों को बाप-दादा हमशरीक साथी अर्थात् फ्रेन्ड्स समझते हैं। इसलिए फ्रेन्ड्स को मुबारक हो। लेकिन अपने फ्रेन्ड्स के समान ऐसे ही सदा सफलता मूर्त बनो। अगर एक फ्रेन्ड् सदा सफलता मूर्त हो और दूसरा धीरे-धीरे चलने वाला हो तो हाथ में हाथ कैसे मिलाकर चलेंगे? फ्रेन्ड्स माना ही समान साथी। पीछे-पीछे आने वाले को फ्रेन्ड नहीं कहेंगे। बाप हो मंजिल के नज़दीक और बच्चे रूकने और चलने वाले हों। तो पहुँचने के बजाए देखने की लाइन में आ जायेंगे। तो ऐसे तो नहीं हो ना? साथ चलने वाले हो ना?

पार्टियों से - सभी अपने को मोस्ट लकीएस्ट समझते हो? ऐसे अनुभव करते हो कि हमने जो देखा, हमने जो पाया वह विश्व की आत्मायें नहीं पा सकती। वह एक बूँद के लिए भी प्यासी हैं और आप सब मास्टर सागर बन गये तो मोस्ट लकीएस्ट हुए ना! ऐसा अपना भाग्य समझकर सदा चलते हो? सारा दिन याद रहता है या प्रवृत्ति में भूल जाते हो? जो चीज़ अपनी हो जाती है वह कभी भूलती नहीं हैं। अपनी चीज़ पर अधिकार रहता है ना! तो बाप को अपना बनाया इसलिए अपने पर अधिकार रहता है ना। अधिकारी कभी भी भूल नहीं सकते। याद में निरन्तर रहने का सहज साधन है - `प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना'। पर-वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप। ऐसे आत्मिक रूप में रहने वाला सदा न्यारा और बाप का प्यारा होगा। कुछ भी करेगा लेकिन ऐसे महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है। खेल में मजा आता है ना, इसलिए सहज लगता है। तो प्रवृत्ति में रहते खेल कर रहे हो, बन्धन में नहीं। स्नेह और सहज योग के साथ-साथ शक्ति की और एडीशन करो तो तीनों के बैलेन्स से हाईजम्प लगा लेंगे।

इस नये वर्ष में विशेष अपने को साक्षात बाप-समान बनाके चारों ओर के तड़पती हुई आत्माओं को लाइट हाउस, माइट हाउस बनकर रास्ता बताते चलो। लक्ष्य रखो कि हर आत्मा को कुछ-न-कुछ देना जरूर है। चाहे मुक्ति चाहे जीवनमुक्ति। कोई मुक्ति वाले हैं तो उनको भी बाप का परिचय देकर मुक्ति का वरदान दो। तो सर्व के प्रति महादानी और वरदानी बन जायेंगे। अपने-अपने स्थान की सेवा तो करते हो लेकिन अभी बेहद के विश्व-कल्याणकारी बनो। एक स्थान पर रहते भी मनसा शक्ति द्वारा, वायुमण्डल और वायब्रेशन द्वारा विश्व-सेवा कर सकते हो। ऐसी पॉवरफुल वृत्ति बनाओ जिससे वायुमण्डल बने।